भारत का अनोखा ऑलराउंडर, जिसने बैटिंग और बॉलिंग दोनों में की ओपनिंग
अद्यतन - जनवरी 25, 2019 3:23 अपराह्न

यूं तो भारतीय क्रिकेट में बहुत से ऑलराउंडर हुए हैं, लेकिन मनोज प्रभाकर भारत के एक ऐसे ऑलराउंडर हुए हैं, जो मैदान में जितने चर्चित रहे, उतने ही विवाद उनके नाम के साथ मैदान के बाहर भी जुड़े। प्रभाकर को एक समय बेहतरीन इन स्विंग गेंदबाज़ कहा गया, लेकिन उनका करियर मैच फिक्सिंग के विवादों के बीच खत्म हुआ।
मनोज प्रभाकर भारतीय टीम के एकमात्र ऐसे आलराउंडर हैं जिन्होंने वनडे क्रिकेट में 1 नंबर से लेकर 11 वें नंबर पर बैटिंग की है। हालांकि रिकॉर्ड को बारीकी से छाने तो हम पाएंगे कि प्रभाकर वनडे में कभी भी नंबर 4 पर बल्लेबाज़ी करने नहीं उतरे। लेकिन यह एक विशेष तथ्य है, जिसमें आंकड़ों की जादूगरी है वरना तो प्रभाकर ने शेष सभी 10 पोज़िशन पर बल्लेबाज़ी की है। वे खास ऑलराउंडर इसलिए भी बन जाते हैं, क्योंकि ऐसे कई मैच रहे जब उन्होंने बतौर बल्लेबाज़ पारी की पहली गेंद का सामना किया और उसी मैच में बतौर गेंदबाज़ पारी की पहली गेंद भी की।
टेस्ट क्रिकेट में भी प्राभाकर ने 4 नंबर और 10 नंबर को छोड़कर सभी क्रम पर बल्लेबाज़ी कई है। वे अधिकतर सलामी बल्लेबाज़ के तौर पर खेलते रहे और गेंदबाज़ी तो उनका मुख्य काम रहा।
अनोखे ऑलराउंडर :
मनोज प्रभाकर ऐसे एकमात्र खिलाड़ी रहे हैं, जो सलामी बल्लेबाजी करने के बाद बॉलिंग में ओपन कर चुके हैं। मनोज प्रभाकर ने ये काम लगभग 50 मैचों में किया है। इतने प्रतिभावान खिलाड़ी को कुछ विवादों के बाद असमय ही संन्यास लेना पड़ा। अपने करियर के अंतिम दिनों में वे बेहद खराब फॉर्म से भी गुज़र रहे थे, जिसका असर उनक क्रिकेट जीवन पर पड़ा।
प्रभाकर ने 39 टेस्ट मैचों में 32.65 की औसत से 1600 रन बनाए और साथी ही 96 विकेट भी चटकाए। टेस्ट क्रिकेट में उनके नाम एक शतक भी रहा। 130 वनडे मैचों मे 24.12 की औसत से 1858 रन भी बनाए और 157 विकेट भी चटकाए। इस दौरान उन्होंने 2 शतक भी लगाए।
प्रभाकर टीम के लिए उपयोगे खिलाड़ी रहे। हालांकि उनके क्रिकेट जीवन में मैच फिक्सिंग का ग्रहण जो लगा उसने पूरी लाइफ ही चौपट कर दी। देश की राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद महानगर में जन्में मनोज प्रभाकर की क्रिकेट की शुरुआत स्कूल-कॉलेज के बाद गाजियाबाद के मोहननगर में बने स्टेडियम में प्रैक्टिस करके हुई।
ऐसे हुई शुरुआत :
मोहन नगर में मोहन मीकिंस नामक औद्योगिक घराना मनोज प्रभाकर को प्रैक्टिस के दौरान भत्ता भी देता था। मनोज प्रभाकर ने काफी मेहनत करके खुद को निखारा और टीम इंडिया में पहुंचे। टीम इंडिया में उन्हें बंदूक की आखिरी गोली की तरह इस्तेमाल किया गया। जब चाहे उन्हें सलामी बल्लेबाजी करवा ली, जब चाहा तो उन्हें मिडिल आर्डर में भेज दिया और जब जरूरत पड़ी तो उन्हें लोअर आर्डर में भेज दिया।
इसके साथ उन्हें बॉलिंग तो करनी ही करनी थी। कभी कभी तो ऐसा होता था कि मैच के एक पारी में बैटिँग करके पहुंचे तो अगली पारी शुरू होते ही बॉलिंग भी करनी पड़ती थी। मनोज प्रभाकर ने दो शादियां कीं। पहली शादी डॉ. संध्या से की। उससे एक बेटा हुआ। उसके बाद उन्होंने दूसरी शादी तमिल एक्ट्रेस फरहीन से की, जिससे दो बेटे हैं। फरहीन मुस्लिम अभिनेत्री हैं जिनसे शादी करने के बाद प्रभाकर काफी चर्चा में रहे।
मनोज प्रभाकर ने संन्यास लेने के बाद कई टीमों को कोचिंग भी दी। मनोज प्रभाकर दिल्ली क्रिकेट टीम के बॉलिंग कोच, राजस्थान क्रिकेट टीम के कोच भी रहे। दिल्ली के कोच रहते हुए उन्होंने मैनेजमेंट और टीम की आलोचना मीडिया में खुलेआम कर दी। इसकी वजह से उन्हें कोच पद से हटा दिया गया था। इसके बाद वह अफगानिस्तान क्रिकेट टीम के कोच बने।
1999 में मनोज प्रभाकर तहलका के मैच फिक्सिंग खुलासे मामले को लेकर सुर्खियों में आये और बाद में वह मैच फिक्सिंग में लिप्त पाये जाने की वजह से बीसीसीआई ने प्रतिबंध लगा दिये थे।