सुरेश रैना ने अपने करियर के मुश्किल समय को किया याद, कहा- मेरे घुटने ऐसे चटक गए जैसे नारियल के टूटने जैसी तेज आवाज आई हो

सुरेश रैना ने कहा कि, अगर मेरे आसपास मेरा परिवार नहीं होता तो मैं इतनी जल्दी ठीक भी नहीं हो पाता।

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Suresh Raina (Photo Source: Twitter)

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व खिलाड़ी सुरेश रैना ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में अपने करियर के सबसे मुश्किल समय को याद किया है। दरअसल उन्होंने बताया कि, वह चोटिल होने पर बैसाखी के सहारे रहने के शारीरिक दर्द से कैसे निपटे। कैसे उनका परिवार और दोस्त उनके बुरे समय में उनके मार्गदर्शक बने।

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बता दें JioCinema पर होम ऑफ हीरोज शो पर सुरेश रैना ने अपनी एक इंजरी के बारे में बात करते हुए कहा कि, जब मैं चोटिल हुआ तो यह फिजिकल इंजरी से ज्यादा मेरे मानसिक स्थिति पर प्रभाव छोड़ा। दरअसल मैं अपने दोस्त अली के घर लखनऊ गया क्योंकि अगर मैंने अपने माता-पिता को बताया होता तो उन्हें बड़ा झटका लगता। मेरे माता-पिता बहुत भावुक हो जाते थे क्योंकि वे मुझे मुश्किल से ही देखते थे और हमेशा पढ़ाई पर ध्यान देने पर जोर देते थे ना कि क्रिकेट खेलने पर। लेकिन मैं क्रिकेट पर कायम रहा।

उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए आगे कहा कि, दरअसल मैं बैसाखी के सहारे था और मेरे लिए यह एक कठिन समय था। लेकिन मेरे दोस्तों के प्यार और मेरे शुभचिंतकों के आशीर्वाद से, यह सब अच्छा हो गया। मैं हॉस्टल वापस गया और नेट्स के पीछे खड़े होकर गेंदबाजों को देखा। हालांकि मेरे दाहिने हाथ में कोई ताकत नहीं बची थी। लेकिन मुझे ठीक होने और मजबूत होकर वापसी करने पर पूरा यकीन था, इसलिए मैंने अपने पैरों पर वापस खड़ा होने के लिए हर संभव थेरेपी की।

अगर मेरे आसपास मेरा परिवार नहीं होता तो मैं इतनी जल्दी ठीक भी नहीं हो पाता- सुरेश रैना 

सुरेश रैना ने आगे कहा कि, अगर मेरे आसपास मेरा परिवार नहीं होता तो मैं इतनी जल्दी ठीक भी नहीं हो पाता। दरअसल मैं खिलाड़ियों के टीम में चुने जाने, किसी के रणजी में ढेर सारे रन बनाने के बारे में पढ़ता था और फिर सोचता था कि मुझे अब शून्य से शुरुआत करनी होगी। लेकिन मेरी बड़ी बहन रेनू ने मुझे जमीन से जोड़े रखा और मुझे वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। साथ ही कड़ी मेहनत करने के लिए कहा।

उन्होंने आगे कहा कि, दरअसल मेरे दिवंगत पिता ने भी यही बात कही थी कि नतीजों की चिंता करने से आप कहीं नहीं पहुंचेंगे, लेकिन कड़ी मेहनत से यह आपको मिलेगी। बस इरादे नेक हों तो भगवान बाकी सब चीजों का ख्याल रखेंगे। राहुल भाई ने जॉन ग्लोस्टर के साथ मिलकर मेरा बहुत समर्थन किया। दरअसल युवी पा को भी साल 2006 में ऐसी ही चोट लगी थी लेकिन मेरी चोट ज्यादा गंभीर थी और वह सोच रहे थे कि मैं बिना ऑपरेशन कराए कैसे खेल रहा हूं। दरअसल रणजी मैच के दौरान जब मैं दूसरी दौड़ शुरू करने के लिए उतरा तो मेरे घुटने ऐसे चटक गए जैसे नारियल के टूटने जैसी तेज आवाज आई हो।

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