मौत को हराकर दोबारा क्रिकेट खेलने आया आयरलैंड का यह जांबाज क्रिकेटर

शेन गेटकेट आयरलैंड के लिए 23 टी-20 और 4 वनडे मैच खेल चुके हैं।

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Shane Getkate. (Photo By David Fitzgerald/Sportsfile via Getty Images)

क्रिकेट प्रशंसकों ने पिछले कुछ वर्षों में क्रिकेटरों की कई प्रेरक कहानियां देखी हैं जिसमें भारत के युवराज सिंह और कीवी बल्लेबाज मार्टिन गुप्टिल का नाम शामिल है। युवराज सिंह 2011 का वनडे वर्ल्ड कप खेलने के बाद कैंसर से पीड़ित हो गए थे, लेकिन उन्होंने एक योद्धा की तरह इस गंभीर बीमारी को मात देते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में फिर से वापसी की। वहीं, न्यूजीलैंड के खिलाड़ी मार्टिन गुप्टिल की बात करें तो बाएं पैर में सिर्फ दो उंगली होने के बावजूद वह न्यूजीलैंड के सबसे बड़े खिलाड़ियों में अपना नाम दर्ज करवाने में कामयाब रहे।

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ऐसी ही कुछ प्रेरणादायक कहानी आयरलैंड के ऑलराउंडर शेन गेटकेट की है, जहां इस आयरिश ऑलराउंडर को साल 2011 में दिल का दौरा पड़ा था जिसके बाद उनकी जान को खतरा था। उनके डॉक्टर्स का मानना था कि वह दोबारा कभी भी क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे। हालांकि, गेटकेट ने कभी भी अपना हौसला नहीं खोया और दोबारा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी भी की।

डॉक्टर्स को पूरा यकीन था कि मैं कभी क्रिकेट नहीं खेल पाऊंगा: शेन गेटकेट

आयरलैंड के 19 वर्षीय ऑलराउंडर शेन गेटकेट उस समय चेशायर के खिलाफ वारविकशायर के लिए अंडर-19 का मैच खेल रहे थे। अपना स्पेल डालने के बाद वह अपने कोच के पास बैठ गए और अचानक से बेहोश हो गए। यहां तक ​​कि वो कुछ दिनों के लिए कोमा में भी थे। उस खराब दिन को याद करते हुए गेटकेट ने खुलासा किया है कि अगर मेडिकल टीम समय पर नहीं पहुंची होती, तो वो बच नहीं पाते।

बीसीसी से बातचीत करते गेटकेट ने कहा कि, “मुझे जीवनभर वोल्फ-पार्किंसंस-व्हाइट का लक्षण रहा है, लेकिन वह कभी भी मेरे लिए बड़ा मुद्दा नहीं बना। शायद साल में एक बार या दो बार मेरा दिल थोड़ा तेज धड़कने लगता था लेकिन 20-30 मिनट तक गर्दन के पास बर्फ लगाने के बाद वह नॉर्मल हो जाता था, और मेरी दिल की धड़कन भी कम हो जाती थी।”

उन्होंने आगे कहा, “अंडर-19 के उस मैच में काफी गर्मी थी। मैं अपना स्पेल डालकर कोच के बगल में बैठ गया क्योंकि मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा था। कुछ ही मिनट बाद मैं डेक पर था। मेडिकल स्टाफ हेलीकॉप्टर से आए और उन्होंने मुझपर दो बार डिफाइब्रिलेटर का इस्तेमाल किया। उसके बाद मैं दो दिन तक कोमा में था। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे मेडिकल स्टाफ जल्दी मिल गया। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि पांच से 10 मिनट की और देरी होती तो मैं नहीं बच पाता।”

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