वीरेंद्र सहवाग ने इशांत शर्मा को लेकर शेयर किया मजेदार किस्सा, कहा- मैं चाहता तो स्वार्थी बन सकता था लेकिन….
वीरेंद्र सहवाग ने एक इंटरव्यू में श्रीलंका के खिलाफ साल 2008 में खेले गए टेस्ट मैच से जुड़ा एक किस्से का खुलासा किया है।
अद्यतन - Mar 16, 2023 3:33 pm

वीरेंद्र सहवाग की गिनती दुनिया का सबसे महान बल्लेबाजों में होती है। दरअसल सहवाग अपनी धाकड़ बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे। अपनी बल्लेबाजी के दौरान वो ज्यादातर गेंदबाजों पर हावी रहते थे। साथ ही वह टेस्ट क्रिकेट में 2 बार तीसरा शतक लगाने वाले दुनिया के एकमात्र बल्लेबाज भी है।
वीरेंद्र सहवाग ने 2008 में खेले गए श्रीलंका टेस्ट से जुड़े एक किस्से का किया खुलासा
इसके अलावा वीरेंद्र सहवाग 6 दोहरे शतक भी लगा चुके हैं। उन्होंने सचिन तेंदुलकर के साथ कई ऐतिहासिक पारियां खेली हैं, जिसका जिक्र अक्सर होता रहता है। वहीं हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में श्रीलंका के खिलाफ साल 2008 में खेले गए टेस्ट मैच से जुड़ा एक बड़ा खुलासा किया है।
दरअसल एक चैट शो में वीरेंद्र सहवाग ने साल 2008 में खेली गई श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि अगर ईशांत शर्मा उनसे बैटिंग करने के लिए आग्रह नहीं करते तो वह और भी रन बना सकते थे। उन्होंने कहा कि, मैं 199 पर बल्लेबाजी कर रहा था और वक्त ईशांत शर्मा मेरे साथी थे। मुझे पता था कि वह मुरलीधरन और अजंता मेंडिस को नहीं खेल सकते। हालांकि मैं उस समय सेल्फिश बन सकता था।
उन्होंने आगे कहा कि, मैं चाहता तो 200 तक पहुंचने के बाद उनको स्ट्राइक दे सकता था लेकिन मैंने मुरलीधरन के खिलाफ पांच गेंदें खेलीं और आखिरी गेंद पर एक रन लिया। लेकिन उस समय ईशांत शर्मा मेरे पास आए और बोले, मैं खेलूंगा। आप बिना कारण ही डर रहे हैं। मैंने कहा ठीक है। फिर मैंने एक सिंगल लेकर 200 रन पूरे किए और स्ट्राइक उन्हें दे दी। हालांकि वह दो गेंद भी नहीं खेल सके। तब फिर मैंने उससे पूछा कि, ‘तो तुमने खेल लिया, पूरी हो गई तुम्हारी इच्छा?
वहीं सेल्फिश होने के सवाल का जवाब देते हुए वीरेंद्र सहवाग ने कहा कि, नकारात्मक माहौल का मतलब यह है कि, कुछ लोग रन बनाना तो चाहते हैं लेकिन दूसरों को असफल होते देखना भी चाहते हैं। लेकिन मैं हमेशा यह चाहता था कि मेरे साथी खिलाड़ी और मैं दोनों ही रन बनाएं। उस समय मैं चाहता था कि मैं स्ट्राइक पर रहूं और टीम के लिए अधिक से अधिक रन बना सकूं। इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं था।