IPL 2022: क्या है आईपीएल ऑक्शन का ‘साइलेंट टाईब्रेकर’ नियम, पूरी जानकारी यहां पढ़िए
क्या होगा यदि कोई फ्रैंचाइजी किसी खिलाड़ी को टीम में लाने के लिए अपनी पूरी राशि खर्च कर दे।
अद्यतन - Feb 11, 2022 1:50 pm

क्रिकेट जगत में इस वक्त भविष्यवाणी और विश्लेषण का दौर जारी है क्योंकि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) 2022 मेगा नीलामी महज कुछ घंटो के बाद शुरू होने वाला है। दो दिवसीय ऑक्शन कार्यक्रम 12 और 13 फरवरी को बेंगलुरु में होगा। कुल 590 खिलाड़ी (370 भारतीय और 220 विदेशी) पर दांव खेला जाएगा और यह देखना दिलचस्प होगा कि अंतिम टीम कैसी दिखती है।
अब, बिडिंग इवेंट की कवायद बहुत आसान लगती है। प्रत्येक टीम को 90 करोड़ रुपये का पर्स आवंटित किया गया था। हालंकि, जब सभी फ्रेंचाइजी ऑक्शन में उतरेगी तो सभी के पर्स मे पैसा कम-ज्यादा होगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्होंने रिटेंशन और ड्राफ्ट में खिलाड़ियों को चुना है। नियमों के अनुसार, नीलामीकर्ता खिलाड़ी का नाम लेगा और उच्चतम बोली लगाने वाली फ्रेंचाइजी उन्हें अपनी टीम में शामिल करेगी।
हालांकि, कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि, क्या होगा यदि कोई टीम किसी खिलाड़ी को बोर्ड पर लाने के लिए अपनी पूरी उपलब्ध राशि खर्च कर दे? हालांकि आकर्षक प्रतियोगिता में अभी तक ऐसी स्थिति नहीं आई है, लेकिन आईपीएल प्रबंधन के पास इस स्थिति के लिए एक विशिष्ट नियम है, जिसे ‘साइलेंट टाईब्रेकर’ कहा जाता है।
कायरन पोलार्ड, रवींद्र जडेजा को आईपीएल ऑक्शन में साइलेंट टाईब्रेकर के तहत खरीदा जा चुका है
कई लोगों को पता नहीं होगा लेकिन यह नियम 2010 से अस्तित्व में है और इसका इस्तेमाल भी किया गया है लेकिन अलग-अलग स्थितियों में। आईपीएल में वैसे कायरन पोलार्ड, रवींद्र जडेजा ऐसे खिलाड़ी रहे हैं जिनके लिए एक से ज्यादा टीमों ने बोली लगाई थी। फिर फैसला साइलेंट टाईब्रेकर से हुआ था। इसके बाद टाईब्रेक के नियमों में बदलाव किया गया है।
‘साइलेंट टाईब्रेकर’ अब यह नियम तब काम आता है जब कोई फ्रैंचाइजी किसी खिलाड़ी के लिए आखिरी बोली लगाई लेकिन इस दौरान उसका पर्स खत्म हो जाए। इस दौरान उसकी बोली किसी दूसरी फ्रैंचाइजी की बोली से मैच कर जाती है। तब दोनों फ्रैंचाइजी से लिखित बोली देने के लिए कहा जाता है। इसमें उनसे आखिरी बोली से ऊपर दिए जाने वाली रकम के बारे में लिखवाया जाता है। इसमें जिसकी रकम ज्यादा होती है उसे खिलाड़ी मिल जाता है।
टाई ब्रेक की नीलामी का पैसा फ्रैंचाइजी को बीसीसीआई को देना पड़ता है यह खिलाड़ी को नहीं मिलता है। इस दौरान पैसा पर्स से नहीं कटता है, टाई ब्रेक बोली में रकम पर कोई पाबंदी नहीं होती है। अगर टाई ब्रेक बोली में भी दोनों टीमों की रकम बराबर रहती है तब फिर से प्रक्रिया दोहराई जाती है। यह तब तक होता है जब तक कि किसी एक फ्रेंचाइजी की रकम दूसरे से ज्यादा न आ जाए।