दिल्ली के पूर्व CP नीरज कुमार ने एस श्रीसंत के आजीवन बैन से बचने को लेकर किया बड़ा खुलासा - क्रिकट्रैकर हिंदी

दिल्ली के पूर्व CP नीरज कुमार ने एस श्रीसंत के आजीवन बैन से बचने को लेकर किया बड़ा खुलासा

सीबीआई की जांच टीम के हिस्से के रूप में 2000 में Hansie Cronje मैच फिक्सिंग स्कैंडल से भी नीरज कुमार जुड़े हुए थे।

Sreesanth
Sreesanth of Rajasthan Royals. (Photo Source: Twitter)

दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त नीरज कुमार ने भारतीय खेल में भ्रष्टाचार के खिलाफ कानून लाने में हिटधारकों की गंभीरता की कमी पर अफसोस जताया है। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि यह भी एक बड़ा कारण था कि पूर्व तेज गेंदबाज एस. श्रीसंत इंडियन प्रीमियर लीग 2013 सीजन में स्पॉट फिक्सिंग के मजबूत सबूत के बावजूद बच गए।

बता दें, नीरज कुमार काफी प्रसिद्ध आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने एस. श्रीसंत और राजस्थान रॉयल्स के साथी खिलाड़ी अजित चंदीला और अंकित छवन को स्पॉट फिक्सिंग के चार्ज पर गिरफ्तार किया था। हालांकि 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व तेज गेंदबाज के खिलाफ सबूत होने के बावजूद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से उनके आजीवन प्रतिबंध पर पुनर्विचार करने के लिए कहा जिसके वह अधीन थे। इसके बाद एस. श्रीसंत की सजा को 7 साल के प्रबंध में घटा दिया गया जो सितंबर 2020 में समाप्त हुआ।

इंडिया टुडे के मुताबिक कुमार ने कहा कि, ‘ऐसा लगता है कि मामला कहीं भी नहीं गया। दुर्भाग्य से भारत में क्रिकेट में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कोई कानून नहीं है। यहां तक की जिंबाब्वे जैसे देश में भी सख्त कानून है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के पास, यहां तक की यूरोप में कानून है क्योंकि सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं बल्कि फुटबॉल, टेनिस, गोल्फ और अन्य सभी खेल में भी भ्रष्टाचार है।’

नीरज कुमार ने किया बड़ा खुलासा

बता दें, सीबीआई की जांच टीम के हिस्से के रूप में 2000 में Hansie Cronje मैच फिक्सिंग स्कैंडल से भी नीरज कुमार जुड़े हुए थे। उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे क्षेत्र थे जिसकी वजह से क्रिकेटर को सपोर्ट फिक्सिंग के दोषी होने से बचाया गया।

नीरज कुमार ने कहा कि, ‘उदाहरण के लिए हम जो चीज़ें करते हैं वह न्यायिक जांच की कसौटी पर खड़े नहीं उतरते हैं। यदि हम कहते हैं कि मैच फिक्सिंग के दौरान लोगों के साथ धोखा हुआ था तो अब न्यायालय पूछेगा, मुझे एक व्यक्ति दिखाएं जिसे धोखा दिया गया हो और उस व्यक्ति को न्यायालय में पेश कीजिए। अदालत में कौन आएगा और कहेगा कि मैं निष्पक्ष खेल की उम्मीद में क्रिकेट मैच में गया था और मैं हर किसी के लिए अपनी क्षमता से मैच खेलता हूं। इससे पीड़ित की अनुपस्थिति में मामला साबित करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।’

भारत में इस तरह के कदाचार (Malpractice) को रोकने के लिए कानून 2013 से काम कर रहा है। गौरतलब है कि 2018 में लोकसभा में पेश किए गए प्रिवेंशन ऑफ स्पोर्टिंग फ्रॉड बिल (2013) में फिक्सिंग सहित खेल धोखाधड़ी के दोषी पाए जाने वालों के लिए 5 साल की कैद और 10 लाख रुपए के जमाने का प्रावधान किया गया था। बिल का ड्राफ्ट न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) मुकुल मुद्गल ने तैयार किया था और इसे मैच फिक्सिंग पर लगाम लगाने के लिए महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा था।इसे ‘सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867’ की जगह लेनी थी, जिसके तहत सट्टेबाजी में लिप्त किसी भी व्यक्ति पर केवल 200 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता था या तीन महीने की जेल हो सकती थी।

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